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नहीं लौटेगा जगदीश, रजत जाएगा फौज में
नवनीत शर्मा
बासा…! चंबा जिला का ऐसा गांव जो कांगड़ा से सटा है। चंबा यहां से उतना ही दूर है जितना विकास…सुविधाओं की कमी उतनी ही पास, जितने कांगड़ा के द्रम्मण या शाहपुर जैसे कस्बे। एक कप जैसी लगती इस वादी में बसे बासा में सूरज आता तो देर से है लेकिन जाता कुछ जल्दी है। सामने पहाड़ी के उस पार डूबते हुए सूरज का गहरा कत्थई रंग जैसे फिजा में घुल गया था। पूरे आकाश को लाल करता हुआ…जैसे पठानकोट में आतंकियों से भिड़ते हुए जगदीश चंद की शहादत पूरे पर्यावरण में घुली हो। गाड़ी मोडऩे की जगह मिलते ही कुछ बच्चों से पूछा, शहीद का घर कहा हैं? जवाब में कुछ छोटे-छोटे बच्चे जिनके सिर पर बाल नहीं थे, आगे चलते हुए बोले, ”ओआ…सैह है जग्गो चाचुए दा घर।Ó यानी आइए, वो है जग्गो चाचू का घर। कुछ बच्चे जग्गो ताऊ भी कह रहे थे।
बरामदे में वो रजाई लेकर शहीद जगदीश चंद का बेटा बैठा है, रजत। उम्र 21 साल मगर चेहरे पर पिता को खो देने पर जो बादल जम जाते हैं, वे साफ दिख रहे थे…संगरूर की किसी चावल मिल में काम करता है। रजत के कंधे पर हाथ क्या रखा मानो कोई फोड़ा दुख गया। आंखों से सब कुछ हिचकियों के साथ बह निकला। शहीद के बड़े भाई बुधि सिंह आ गए। परिचय हुआ तो बोले, ”मेरे पिता जी भी सेना में थे, और हम चार भाइयों में से तीन भी सेना में हैं, जग्गो या जगदीश तीसरे नंबर पर था। ये गांव के बच्चे यूं ही नहीं बैठे हैं…जग्गो इन्हें बहुत प्यार करता था। घर में जो आ गया वह जग्गो की मिलनसारी से प्रभावित हुए बिना नहीं रहता था। सबके लिए कुछ न कुछ होता था उसके पास।Ó जगदीश की बहन बिमला बताती हैं, ”मेरे सारे भाई एक से बढ़ कर एक लेकिन जगदीश जैसा पूरी दुनिया में कोई नहीं।Ó बिमला के यहां बच्चे नहीं थे तो जगदीश ने अपनी बड़ी बेटी उन्हें दे दी। इसके बाद दो बेटियां और हैं किरण बाला और तमन्ना। एक बीबीए करने के बाद एमए कर रही है, दूसरी बीए में है। इन्कार के बावजूद चाय आ गई। कुछ बातें हवा में तैर रही हैं…हम डरने वाले नहीं… रजत को भी फौज में भेजेंगे…बेटे को नौकरी दे दे सरकार तो बहुत मेहरबानी हो…देखो जी बातें याद रह जाती हैं…शहीद के अंतिम संस्कार में कांगड़ा वाले सभी आए…डीसी, मंत्री, मनकोटिया, पठानिया, सरवीण लेकिन हमारे चंबा वालों को टाइम नहीं मिला। न विक्रम जरयाल विधायक आए और न कुलदीप पठानिया… शहीद की बहन बोली, ”बहुत शर्म आई… हमारे गांव में एक ढंग का श्मशानघाट तक नहीं है। इतने लोग आए…कोई कहीं बैठा था कोई कहीं बैठा था।Ó
उठने की बारी आई तो इच्छा थी, वीरनारी का आशीर्वाद लेने की। पति की तस्वीर के सामने और महिलाओं के साथ बैठी स्नेहलता के पांव छूए तो हाथ आशीर्वाद में उठा लेकिन हिचकियों ने कुछ कहने नहीं दिया। शायद यह संस्कार ही थे कि कंधे से कंधा मिला कर जगदीश के साथ चली स्नेहलता रोते हुए बस इतना कह सकीं, ”मेरा मालिक….Ó हम बाहर निकल आए…घुप्प अंधेरा था और काटने को दौड़ता सन्नाटा। शहीद के नए बनाए घर में जली बत्तियां देखीं और इस यकीन के साथ लौट आए कि जगदीश का नाम उसी तरह चमकता रहेगा जैसे सामने की पहाड़ी से उगता सूरज।
एक संक्षिप्त परिचय जगदीश चंद : निवासी गोला, तहसील सिंहुता, जिला चंबा डोगरा रेजीमेंट से वर्ष 2009 में हवलदार पद से रिटायर। सेवानिवृत्ति के बाद पठानकोट एयरफोर्स बेस में डिफेंस सिक्योरिटी कोर (डीएससी) में सिपाही। कुछ दिन पहले लेह से स्थानांतरित होकर पठानकोट एयरफोर्स बेस में तैनाती। ज्वाइनिंग के बाद कुछ दिन की छुट्टी पर घर आए थे। पहली जनवरी को ड्यूटी पर पठानकोट गए थे। घर पर पत्नी स्नेहलता, बेटा रजत व बेटियां किरण व तमन्ना। शहादत से पहले आतंकवादी को उसी की राइफल से ढेर किया, फिर शहादत पा ली।
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