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एक पोस्टमार्टम रपट
एक जिंदगी में
कई जीवन जी
लेना चाहता था यह आदमी
अजब थी चाल
कभी नहीं चला ज़माने के साथ
पाया गया कि
दीमाग का सबसे पहले वह हिस्सा मरा
जहां अब निचेष्ट है
सच्ची-पक्की
साफ सी जिंदगी जीने की ललक
गुर्दे इसके आजिज आ चुके थे
आखिर कितना कुछ साफ करते
आंतों में दर्ज है वह मौसम बर्फीला
जब रिश्तों का ताप
चला गया होगा शून्य से
कई डिग्री नीचे
दिल के कई हिस्सों में दर्ज है
दुख ऐसे
जिन्हें यह खुद भी समझ नहीं पाया
नक्श हैं ऐसी हार
जहां यह जीत सकता था
और कई ऐसी जीत
जहां यह हार सकता था
रुक गई हैं
इसकी धमनियों में बहती कविताएं
आंखों की पुतलियों में नक्श हैं
कुछ उदास, अकेले मगर सनहरे सूर्यास्त
वहीं कुछ अर्जियां है रोशनी के नाम
रात से घबराए पहाड़ों की
पुतलियों के ठीक नीचे मिलती है
एक मुड़ी-तुड़ी पर्ची
जिस पर लिखा है
‘सपने देखना बुरी बात नहीं
पर उनके लिए जिंदगी ही खर्च कर देना भी ठीक नहीं’
गले में अटके मिले हैं
कुछ उदास रागों के बोल
नाक की हालत बताती है
बुरी चीजें जल्द सूंघ लेता था
पर फिर बढ़ गई इसके नाक की हड्डी
इसलिए जीता रहा कई दिन
अच्छा ही हुआ
वरना बार-बार होता द्वंद्व
खुशबू और बदबू में
ज़ेहन के एक कोने में सुरक्षित हैं
खास दोस्तों के नाम जिन्हें
सुनाता था कविताएं लिख कर पहली बार
वहीं मिला है
बेहतर दुनिया का एक ज़ब्तशुदा नक्शा
नक्शे में है कई खूबियां
जैसे
किस कोने से रहेगा
जज्बों के चांद को देखने का पूरा प्रबंध
किस कोण से पहुंच सकता है सूरज
बड़ी मंजिलों को फांद कर
झुग्गियों तक
या फिर कहां से होगा
तंग गलियों में ताजा हवा का इंतजाम
लेकिन इसी नक्शे पर नहीं हो सका काम
और यही है बड़ी वजह इसकी मौत की
अंतत: सबसे दिलचस्प निष्कर्ष यह
कि इसकी हालत नहीं थी ऐसी
कि इतना भी जी पाता
यह आदमी जीया है जितने भी साल
लगता है जी गया
सिर्फ और सिर्फ कविताओं के कारण
– नवनीत शर्मा
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