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जो कहा नहीं गया

भाव संसार
भाव संसार
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वह चिटिठयों के  क्षरण का समय था
जैसे धीरे-धीरे कोई होता है मरणासन्‍न /
वह कहने से
बचने का नहीं
कहने के लिए समय न होने
का संक्रमणकाल था/
पत्र वैसे ही खत्‍म हुए
जैसे होते हैं शब्‍द /
सबसे पहले उड़ा ‘प्रिय’
फिर हाशिये से बाहर हुए ‘आदरणीय’
फिर नाम 
और फिर वह गायब हुआ
जो कहना होता था /
यह समय के चाबुक से छिली
संवाद की पीठ थी या
व्‍यस्‍तताओं के बटुए से छिटकी भाषा की पर्ची
लेकिन पता यही चला
संवाद नहीं रहा/
खतरनाक आवाज करने वाले
काले चोंगे भी चुक गए
फिर अचानक ही दुनिया आ गई जैसे मुट्ठी में
ऐसा यंत्र जो विभिन्‍न ध्‍वनियों में नाम झलका कर
शोर मचा कर बताता था
‘अमुक कॉल कर रहा है’/
संप्रेषण का यह अद्भुत अवतार था
कि जिस दिन लंगड़ाई हुई भाषा में पहला
एसएमएस अवतरित हुआ होगा
उस दिन यकीनन व्‍याकरण की तेरहवीं रही होगी/

दुनिया मुट्ठी में हुई पर
यह किसी ने नहीं देखा
कि संवाद अंगुलियों से फिसल गया/

दरअसल रिसीव्‍ड कॉल कई भ्रम तोड़ती है
उसके पास होता है
मौसम का मिजाज
गाड़ी का समय
क्‍या खाया
क्‍या पकाया
सब सूचनाएं जरूरी मगर खुश्‍क हैं

संवाद कहां रहा  यह आप जानें
लेकिन 
भाषा और अभाषा के बीच
सुपरिचित ध्‍वनि के साथ
दर्ज होने वाली
कोई मिस्‍ड कॉल दैवीय होती है/

जो अब भी यह बताती  है
कि कोई है जिसे कुछ कहना था
कोई है जिसे कुछ सुनना था
जिसके होते हैं
अदृश्‍य शब्‍द
अनोखे मायने
अद्भुत व्‍याख्‍याएं

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