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एक थी गाय

भाव संसार
भाव संसार
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(तारो, बुद्धो, गंगा, सोमा, यामिनी और मंगलो नामक गायों की स्‍मृति को समर्पित, जिन्‍होंने मूक रह कर इतना स्‍नेहिल संवाद किया कि अब भी भूलता ही नहीं)

अभी-अभी जो वाहन से
टकरा कर
मरने-मारे जाने से बची है
उसे गाय कहते हैं।
जिसके गोबर में लक्ष्‍मी और मूत्र में रहते हैं वैद्य
पशु…..
जिसके बारे में
भरे रहे हैं पुराण
सुंतो आंटी का पम्‍मू स्‍कूल में
लिखता था
‘गाय एक पालतू पशु है
इसकी चार टांगें
चार थन,
चार पैर होते हैं…’
सबसे रोचक पंक्ति
जो पम्‍मू को कभी याद नहीं हुई
‘गाय पैर पसार कर बैठी है’

चूंकि सबको भगवान बना देने की प्रथा है
इसलिए गाय के पास कथा कम , अधिक व्‍यथा है ।

दरअस्‍ल हाय के साथ गाय का वास्‍ता
तब से शुरू हुआ जब
विश्‍व एक गांव बन रहा था
यानी रेत पर पांव बन रहा था
संवेदना की गुनगुनी धूप पर
बौद्धिक छद्म छांव बन रहा था

वैज्ञानिक कहे जाने वाले कुछ लोग
मोटी पगार पा रहे थे
और कुछ टीके
अचानक गायों का दूध बढ़ा रहे थे और
वैज्ञानिकों के कोट और चश्‍मे
नौकरी बजा रहे थे।

इनकी आत्‍मा जानती है
कि गाय के गौशाला से बेघर होने के पीछे ये भी हैं।

कितनी खुशनसीब रही
सोने के अंडे देने वाली मुर्गी
कहावतों में ही मर गई
वरना सड़कों पर भटकती….
पॉलीथीन खाती
अंतत: मरती

गाय तब तक
किसी धार्मिक
राजनीतिक संगठन के नारे का हिस्‍सा नहीं थी।
तब तक उसका मूत्र सूतक-पातक से शुद्धि का माध्‍यम था।
वह पांचगव्‍य में थी।
उखड़ती सांसों वाले लोग
उसकी पूंछ पकड़ करते थे वैतरणी पार
(अब उसे सकुशल सड़क पार करने का भरोसा नहीं होता)

गौशालाओं की दीवारें तब तक
इतनी पराई नहीं थी

कुछ तो था
जो नया रस्‍सा पहनाई गई तारो गाय को रोकता था
आंगन से बाहर जाने से
तारो नहीं जानती थी कि
उसे अपरिचित के साथ इसलिए भेजा जा रहा है
क्‍योंकि वह बेच दी गई है

मंगलो गाय
लंबी जीभ से बाल चाट कर
क्‍या-क्‍या नहीं कहती थी

फिर अचानक उधर गायों के थन सूखे
इधर लोगों के मन

कान्‍हा!
आओ, उन्‍हें सुनो
वे निशब्‍द हैं
पॉलीथीन खा रही हैं
कचरा चबा रही हैं

अब यह भी जुड़े पाठ् यक्रम के निबंध में
जरूरी नहीं गाय की चार टांगें ही हों
संभव है, कोई तेज वाहन एक टांग तो ड़ गया हो
दाईं आंख में सूरज न हो, जख्‍म हो
बाईं में चंद्रमा न हो, नासूर हो

और अब वे पैर पसार कर नहीं बैठ पाती…
क्‍योंकि गोशालाओं से बेदखल पशु पांच पसार कर नहीं बैठते
ठौर ढूंढ़ते हैं….
उदास है गाय की जुगाली
कि जब उसकी आकुल रंभाहट
आसपास ही कोई सुराख नही
करती
तो
कैसे पहुंचेगी
जनपथ्‍ा तक….

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