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अमन काचरू से क्षमायाचना सहित

भाव संसार
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अमन काचरू….। वह मेडिको छात्र जो कांगड़ा जिले के टांडा में रैगिंग का शिकार हो गया। साल भर पुरानी कविता जागरण जंक्‍शन पर इस आस के साथ कि मुसाफिर इसके जज्‍बे को देशभर में ले जाएं।

 

तुम उधर मत जाना

 

राजधानी के अपराध आंकड़ों को छोड़
जब चला एक शांत कस्‍बे के लिए
निश्चिंत था मैं।
ठंडी हवाओं ने बताया
यहां सुकून है,
यहां के लोगों में है कुछ ऐसा कि
देवता का जिक्र आता ही है।
यहां वातावरण में गूंजती है
इनसान को मौत के मुंह से खींच लाने की कसम
भगवान तैयार हो रहे हैं यहां
ग्रामीण चाय की दुकानों पर बतियाते हैं।
लेकिन धूपभरी एक दोपहर
मुझे बताया एक बरगद ने
कि यह जो बस्‍ती है
वहां दिन रात से उतना ही अलग है
जितनी रात होती है जुदा दिन से ।
दिन में भयावह दिख्‍ाने वाली खड्डें
रात को तब रहमदिल बिस्‍तर बन जाती हैं
जब यह भगवान बनाने वाली इमारत राक्षसों के अट्टहास से
गूंजने लगती है।
दिन के जितने हैं मासूम चेहरे
रात को उनके दो दांत बाहर आ जाते हैं
वे डराते हैं, धमकाते हैं, नोचते हैं और लूटते हैं
मुझे नहीं था यकीन
कि मां चामुंडा से मिल कर आती
बनेर खड़ड एक रात मेरा बिस्‍तर बन जाएगी
जब मैने देवताओं को राक्षस बनते देखा था।
मैंने मदद के लिए आवाज लगाई
पर किसी ने मेरे मुंह पर
प्राचार्य दफ्तर का पेपरवेट उठा कर दे मारा
मेरी जीभ छिल गई
मैं चुप हो गया।
मेरे बाजू अभी सलामत थे
मैने दूर देखा ‘राघवन कमेटी’ की सिफारिश
धौलाधार की चोटी पर चमक रही है
मैने हाथ बढ़ाया
लेकिन इससे पहले ही चार हंसते हुए चेहरों ने
उसे फाड़ कर फेंक दिया।
मैने सोए हुए चौकीदार को जगाया
लेकिन उसके खर्राटों ने बताया
मेरा वार्डन भी सोया हुआ है।
मैंने कागजों से कहा अपना दुख
आकृत्तियां बनाईं,
लिखा, उकेरा
सब कुछ कि मैं कितना बोझ उठाकर कर घिसट रहा हूं।
किसी ने मुझे नहीं देखा
कुछ वर्दियां चमकती रही
कुछ हूटर बजते रहे
जूनियरों के सिर मुंडते रहे
वे नमस्‍ते की मुद्रा में चलते रहे
कुछ लैब कोट खून से सनते रहे।

पर उस रात तो हद ही हो गई
उस रात मेरे सपने तोड़े गए
उस रात मेरा सिर फोड़ा गया
उस रात मुझे पूरे का पूरा तोड़ा गया
और अब मैं कहीं नहीं हूं।

तुम देखो कि
मैं अपने शहर में क्राइम का शिकार नहीं हुआ
मुझे दिल्‍ली की ब्‍लू लाइन ने नहीं रौंदा
मुझे गुड़गांव पुलिस ने फर्जी एनकाउंटर में नहीं सुलाया
पर यह जो घर तुम्‍हारा है
मुझे यहां हरियाली ने मारा है
सुनो,
तुम उधर मत जाना।

गांव में हल चला लेना
आटर्स पढ़ लेना
मां-बाप के सपने टूटने देना

नालायक ही रह जाना
दुकानदारी चला लेना
कुछ भी करना पर
यूं मत मरना
यह मरना नहीं
मारा जाना है।

सच कहूं

मैं अभी मरना नहीं चाहता था

यह यब मुझे अमन काचरू ने बताया
जब जाने के कई दिन बाद तक
वह मुझसे बतियाया।

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